प्रगात पर पूर्ण विराम क्यों

कई बार घर-परिवार के लोगों की बाध्यता की वजह से महिलाएँ जॉब छोड़ने पर मजबूर होती है तो कई बार किसी अन्य शहर में शादी हो जाने की वजह से उनकी प्रगति पर पूर्णविराम लग जाता है और अक्सर वे ऑफिस में पूर्वाग्रह का शिकार होती हैं जहाँ उनकी योग्यता को सिर्फ इसलिए कमतर आँका जाता है कि वे महिला हैं। भारतीय कंपनियों में प्रवेश स्तर पर तो महिलाएं तेजी से आगे बढती हैं लेकिन टॉप मैनेजमेंट तक बहुत कम महिलाएँ पहुँच पाती है। पणीवराम ड़े शहरों में लोग महिलाओं को बड़े पदों पर स्वीकार कर रहे हैं। लेकिन छोटे शहरों में महिलाओं का संघर्ष घर की दहलीज से शुरु हो जाता है। लोग महिलाओं को 9-5 की जॉब के लिए फिट समझते हैं लेकिन जहाँ बात सेल्स जैसे क्षेत्रों की आती है वे महिलाओं की उपस्थिती को पचा नहीं पाते। कई बार घर-परिवार के लोगों की बाध्यता की वजह से महिलाएँ इतनी बड़ी कीमत चुकानी है कि मैं सबको खुश रखने के बावजूद छोड़ने पर मजबूर होती है तो कई बार किसी अन्य शहर में शादी अपनी खुशियाँ न पा पाऊँ? जाने की वजह से उनकी प्रगति पर पूर्णविराम लग जाता है और स्वतंत्र सोच बहुत जरुरी अक्सर वे ऑफिस में पूर्वाग्रह का शिकार होती हैं जहाँ उनकी योग्यता 'एक आम औरत के विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा सिर्फ इसलिए कमतर आँका जाता है कि वे महिला हैं। जाती है कि वो सबसे लिए समर्पित रहे। क्यों एक पुरुष से उसकी अपनी सोच है। अगर वह स्वयं यह स्वीकार कर लेगी की जबकी वास्तविकता तो यह है कि महिलाओं व पुरुषों की नेतृत्वपरिवार या समाज यह अपेक्षा नहीं करता क्यों आज भी स्त्री से वह किसी पर निर्भर है और उसे वही करना है जो दूसरे चाह रहे हैं तो क्षमता में गजब का अंतर है। नेतृत्व को लेकर पुरुषों का नजरिया यही अपेक्षा की जाती है कि वह उसी तौर तरीके से रहे जैसे सौ वह कभी आगे नहीं बढ़ पाएगी।स्त्री में अगर कुछ करने की आग है, प्रक्रिया से प्रेरित, एक ही दिशा में चलते रहने वाला, स्वकेंद्रित व साल पहले रहती थी महिलाओं की बात करते हुए आभा कहती ___ लालसा है तो वह परिवार, समाज सभी को अपने अनुसार ढाल पदानुक्रम में कार्य करने का रहता है। वहीं महिलाएँ समूह में व सहयोग हैं कि हर महिला से अपेक्षित रहता है कि जिंदगी के रंगमंच पर लेती है। भावना के साथ कार्य करती है व नेतृत्व करने में पुरुषों से बेहतर वह सभी भूमिकाओं में फिट बैठे। फिर चाहे वह आदर्श बहू-पत्नी सुश्री आभा कहती हैं कई बार परिवारवालों का रवैया भी गई। की हो या समर्पित बेटी-माँ की। इसी वजह से औरत भी स्वयं महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकता है। जब लड़की मायके में रहती कमतर नहीं है वह को दूसरों की नजरों से आँकने लगती है। फलाँ व्यक्ति के है तो अभिभावक बार-बार उसे समझाते हैं कि तुम पराया धन हो, खून, हत्या, डकैती, लूट, बलात्कार...। यह तो अरपाध की श्रेणी मापदंडो पर तो में खरी उतर रही हूँ ना...., फलाँ व्यक्ति मेरी तुम्हें सहनशीलता रखनी है, तुम्हे ही एडजेस्ट करना है आदि। जब आते हैं। लेकिन सहकर्मियों द्वारा कसी गई फब्तियाँ, परिवार वालों अवहेलना तो नहीं कर रहा ना आदिवह ससुराल जाती है तब उसे ससुराल के प्रति जिम्मेदारियाँ गिनाई नारी की स्वेच्छा से चुने गए करियर पर पाबंदी, कार्य-स्थल पर जब वह दूसरों के मापदंडो में उलझ जाती है तो उसकी जाती है। उनकी प्रतिभा को कमतर आँका जाना भी नारी मन की हत्या से कम यह समझने की कोशिश कोई नहीं करता कि उसके जीवन के जिंदगी में उलझने पैदा होती हैं। इसलिए जरुरत है स्वयं के मन और स्वयं की आत्मा की आवाज सुनने की। अगर वह इस यह सजा स्त्रा मन का आहत करता हाक क्या स्त्रा हान का मुझ प्रति उसकी भी कुछ चाहतें होंगी। उससे तो केवल यही अपेक्षा की सामंजस्य तो काम्प्रोमाइज का नाम देकर जिंदगी व्यतीत करेगी तो जिंदगी की रेस में पीछे रह जाएगी